देवायण एक परिचय

यह संक्षिप्त पुस्तक हमें इस नए महाकाव्य की एक अंतर्दृष्टि प्रदान करने का प्रयास करती है जो हमें सृष्टि के आरंभ की कहानी कहता है, और उसके साथ-साथ चार युगों को आवृत्त करते हुए 26,000 वर्ष-व्यापी निरंतर आवर्ती मानव-चक्र की पूरी कहानी कहता है। इसमें स्वर्णिम, रजत, कांस्य और लौह या सत्य, त्रेता, द्वापर तथा कलि युग सम्मिलित हैं। देवायण हमसे कहता है कि मानवता शीघ्र ही अपनी अंतर्निहित आध्यात्मिकता पुनःप्राप्त कर लेगी क्योंकि हम अब स्वर्णिम युग की चौखट पर हैं। हम ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर से चार युगों के दौरान होने वाली घटनाओं के बारे में जानते हैं क्योंकि वे सर्वदा रहते हैं। वे इस कहानी के प्रवक्ता हैं और हम विश्व में होने वाली घटनाओँ को उनके परिप्रेक्ष्य से देखते हैं। वे सूत्रधार हैं जो हमारे सामने होने वाली घटनाओं की पृष्ठभूमि का वर्णन करते हैं। हम महाकाव्य के व्यापक दृश्यपटल पर वीरोचित और पैशाचिक चरित्रों को डग भरते हुए देखते हैं। जिन युगों में देवता और दानव एक दूसरे का सामना कर रहे थे, हम अच्छाई और बुराई के उन प्रलयंकारी संघर्षों का अंश बन जाते हैं। प्राचीन काल के वीरोचित पात्र महाकाव्य के व्यापक दृश्यपटल पर गतिशील होते हैं और हम ऐतिहासिक घटनाओं को एक भिन्न दृष्टिकोण से जानते हैं। हमें भविष्य में होने वाले घटनाओँ की जानकारी भी होती है। वह सभी अद्भुत कहानियाँ जिन्हें हमारे माता-पिता और दादा-दादी हमें सुनाते थे, अचानक जीवंत हो उठती हैं और हम उन्हें अपने सामने घटता हुआ हुए देखते हैं। पहली बार हमें मानवता के इतिहास की सिलसिलेवार और सविस्तार कहानी मिलती है जिसमें कोई भी अवरोध नहीं है। मैं पूरी तरह मानती हूँ कि कोई भी सार-संक्षेप मूल देवायण पर उचित न्याय नहीं कर सकता। महाकाव्य की सुंदरता का वर्णन करने के लिए इससे बहुत बड़े ग्रंथ की आवश्यकता है। फिर भी, इससे अधिक गहराई से किया गया विश्लेषण अपने उद्देश्य में सफल नहीं होगा क्योंकि शोधकर्ताओँ के अतिरिक्त, आधुनिक पाठकों के पास समय का अभाव है। पहली बार, हमें किसी महाकाव्य में उन घटनाओं का वर्णन मिलता है जिन्होंने मानवता को प्रवृत्त किया है। इस सार-संक्षेप के साथ हम इस महाकाव्य पर शोधकर्ताओं, सत्य-संधानियों और साहित्य-प्रेमियों का ध्यान आकर्षित करने की आशा करते हैं। हम नम्रतापूर्वक उनका कौतुहल जगाने के लिए इच्छुक हैं क्योंकि इसका अध्ययन उन्हें अलंकृत करेगा।

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Amita Nathwani

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