लव मंडल

लव मंडल में एक विस्मयकारी आख्यान है, जिसमें लौह युग के स्वामी - कलि, दुर्वासा ऋषि से अयोध्या जाने के लिए कहते हैं। अयोध्या पहुँचने पर, ऋषि भगवान राम से तुरंत मिलने के लिए अनुरोध करते हैं। इससे पहले, कलि ने राम से एक वचन ले लिया था कि उनकी महत्वपूर्ण बातचीत को दौरान कोई भी व्यवधान नहीं डाले। यदि कोई बाधा डाले, तो उस व्यक्ति को राज्य से निष्कासित कर दिया जाए। जब वे बातचीत करने में व्यस्त थे, तब लक्ष्मण बाहर खड़े थे और डरे हुए थे कि यदि ऋषि से प्रतीक्षा कराई जाए तो वे क्रुद्ध हो जाएँगे। वे बलपूर्वक कक्ष में प्रवेश कर गए क्योंकि वे ऋषि की इच्छा पूरी करना चाहते थे। यह कलि के साथ पूर्व-निर्धारित समझौते का उल्लंघन सिद्ध हुआ। इसके फल-स्वरूप भगवान राम, लक्ष्मण को अपने राज्य से निष्काषित करने के लिए बाध्य हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि लक्ष्मण ने सरयू नदी में आत्मविसर्जन कर दिया। इससे पहले, भरत और शत्रुघ्न धरती माता की गोद में सीता के लुप्त होने के कारण इतने क्षुब्ध हो गए थे कि उन्होंने स्वेच्छा से अपने शरीरों को सरयू में विसर्जित कर दिया था।

    हम भगवान राम और राजा जनक के बीच वार्ता सुनते हैं। यहाँ राम योग के विभिन्न मार्गों – राज योग, हठ योग और भक्ति योग का वर्णन करते हैं और बताते हैं कि हम परम ज्ञान कैसे प्राप्त करते हैं। इसके बाद, भगवान राम उपनिषदों और अन्य ग्रंथों में निहित ज्ञान का भी वर्णन करते हैं।

    अपने उत्तरदायित्त्वों को गंभीरता से लेते हुए, वे जनक से लव और कुश के विवाह सुनिश्चित करने के लिए निवेदन करते हैं, जिससे वे अपने साम्राज्य को शासन करने का भार ग्रहण करें और राम एक राजा के कर्त्तव्यों से अवकाश ले सकें।

 

    देवायण के इस भाग में वर्णन की गई समयावधि के दौरान, हम देखते हैं कि कैसे त्रेता युग के स्वामी, त्रिता से भगवान राम विभिन्न विषयों पर परामर्श प्राप्त करते हैं।  हम कुशध्वज, अश्वतर, रुरु, इत्यादि के शासन तथा उनके शासन काल के दौरान होने वाले घटना-क्रमों के दर्शक बन कर उनके बारे में जानते हैं।

    श्री राम हनुमान और ऋषियों को भी परामर्श देते हैं, जहाँ वे उन्हें उपनिषदों और योगासनों का ज्ञान और शिक्षा प्रदान करते हैं।

      हम उन कठोर यातनाओँ के साक्षी बनते हैं जिन्हें हरि, भगवान विष्णु के लिए अटल भक्ति के कारण, प्रहलाद को स्वयं उनके पिता, हिरण्यकश्यपु ने झेलने के लिए बाध्य किया। अंत में, भगवान विष्णु ने अपने नरसिंह अवतार में सभा कक्ष के एक खंभे से, आधे सिंह और आधे मनुष्य के रूप में प्रकट होकर हिरण्कशिपु का संहार किया।

     यहाँ, एक अन्य उल्लेखनीय प्रसंग में ऋषि भृगु हमें एक सुंदर कविता द्वारा बताते हैं कि कैसे भगवान ने वाराह अवतार लेकर, एक वन्य शूकर के रूप में हिरण्याक्ष का वध किया.

    बाद में, विभीषण लव से शवर और शवरी की पृष्ठभूमि का वर्णन करते हैं। शवरी वास्तव में सौदामिनी नामक एक देवी थी, जिनको, एक मनुष्य के साथ प्रेम हो जाने पर, उनके रुष्ट भाई, विद्युत द्वारा स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया था। उन तीनों को, शवर, शवरी और जगत्माली के रूप में विद्युत को मर्त्य लोक में, साधे-साधे पर्वतीय लोगों के रूप में अपनी जीवन बिताना पड़ा।

      भगवान राम के देह त्याग के साथ ही, उनका शोक पूरे संसार द्वारा मनाया गया। लव चाहते थे कि यह संवाद उनके पिता के उन सभी मित्रों को दे दिया जाए जिन्होंने रावण के विरुद्ध संघर्ष में उनकी सहायता की थी। सभी को यह शोक संवाद देने के लिए, कुश किष्किंधा और उसके बाद लंका गए। उन्हें उन स्थानों पर भी जाने की इच्छा थी जहाँ माता सीता को मुक्त करने के लिए उनके पिता ने रावण के विरुद्ध युद किया था। ठीक उसी समय, कल्कि द्वारा प्रोत्साहित होकर सर्पों ने लंका पर अधिकार कर लिया।  उन्होंने लंका-वासियों के साथ-साथ कुश की भी हत्या कर दी और लंका में रखे गए बहुमूल्य रत्नों के भंडार को लूट लिया।  केवल राजा विभीषण को, जो अमर थे, तथा उनकी पत्नी को स्वेच्छा से लंका छोड़ कर तुरंत चले जाने, अथवा उनके साथ युद्ध करने के लिए कहा गया।

    इस विध्वंसकारी समाचार को जान कर, लव ने लंका में सभी सर्पों का विनाश कर के प्रतिशोध लिया।  इस खंड के अंतिम भाग में, हम विषैले सर्पों के दंशसे लव का देहावसान होते देखते हैं।

Pingal Ramayana is an integral part of the published epic, Devayan.  It is included in the Ram Mandala of the epic, particularly the Ramayana Varga that is spread over the second and third volumes of the great epic, published in the years 2002 and 2004.  It is included in a separate section towards the end of the website.

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Amita Nathwani

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