पिंगल रामायण की कहानियाँ - III

लंका कांड में, जब श्री राम महाबली रावण से सामना करने की तैयारी कर रहे थे तो विभीषण ने अशोक वाटिका में बंदिनी सीता को छुड़ाने के लिए संक्षिप्त देवी-महात्म्य सुनाया। वहाँ उन्होंने उन दोनों को देवी के विभिन्न रूपों के बारे में बताया। अपनी शक्ति और अपने साहस से वह कैसे हर बार, अमंगल बलों - असुरों की चुनौतियों और अपने सामने बिछाए गए माया जालों पर काबू कर पाती थीं? अनेक बार, जब देवता समस्याओँ का सामना करते, तब वे उनके पास आते और सहायता के लिए याचना करते। वे देवताओँ की सहायता करने के लिए अत्यंत इच्छुक थीं और सभी आकारों में उनके शत्रुओँ का पूरी तरह विनाश करने का प्रबंध करतीं।

एक बार रावण के पुत्र महिरावण ने, जिसने भ्रामक बलों को अपने नियंत्रण में रखा था, राम और लक्ष्मण का हरण कर लिया और उन्हें संसार के दूसरे छोर पर ले गया। उन्हें देवी के मंदिर में बंदी बना कर रखा गया और देवी को प्रसन्न करने के लिए उनकी नरबली चढ़ाना नियत किया गया था।  यह राम और लक्ष्मण का विनाश करने के लिए एक और अमंगल रणनीति थी, जिससे रावण संसार में सबसे शक्तिशाली बना रह सकता था। यह उन दोनों का विनाश करने के लिए एक और दुष्ट रणनीति थी, जिससे रावण संसार में सर्वशक्तिमान बना रह सके। फिर भी, हनुमान के अविश्वसनीय प्रयासों द्वारा उन्हें उनकी भयावह नियति से बचाया गया।  हनुमान ने उन्हें उनकी कुटिया में वापस लाने का भी प्रबंध किया जहाँ वे आरम्भ में ध्यान लगा रहे थे।   

रावण को वरदान प्राप्त था कि उसे केवल उस बाण से मारा जा सकता था जिसे रानी मन्दोदरी द्वारा किसी गोपन स्थान में सुरक्षित छुपा कर रखा गया था। कोई भी नहीं जानता था कि वह कहाँ था। हनुमान ने गुरु बृहस्पति का रूप धारण किया। उन्होंने रानी से कहा कि देवी अब राम के साथ थीं, वे उन्हें बता देंगी कि बाण को कहाँ रखा गया था। यह सुन कर मन्दोदरी ने भयभीत होकर उन्हें बाण दे दिया और अपने गुरु से याचना की कि उसे सुरक्षित रखें जिससे राजा रावण के लिए कोई संकट न हो। फिर भी, जब वे मंदिर से गए, उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिया और रानी जान गई कि रावण को अब नहीं बचाया जा सकता।

जब रावण के विरुद्ध लंका युद्ध को जीत लिया गया, तब एक अत्यंत विचित्र घटना हुई। सीता से कहा गया कि वे राम से पुनर्मिलन के योग्य होने के लिए अपनी निर्दोषिता प्रमाणित करने के लिए अग्नि परीक्षा से होकर गुजरें, क्योंकि वे दीर्घ काल तक रावण के प्रभाव के अंतर्गत रही थीं। देवताओँ सहित सभी व्यक्ति, जो वहाँ उपस्थित थे, आश्चर्यचकित रह गए। हम निरीक्षण करते हैं कि वे कैसे अग्नि परीक्षा से होकर गुजरीं, जहाँ स्वयं अग्नि देवता, हुताशन मौजूद थे। एक बार, जब वे इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गईँ, उन्हें प्रभु राम के साथ रहने के लिए पवित्र विचार किया गया।

उत्तर कांड में हम एक बार फिर शनि की भूमिका देखते हैं, जहाँ उन्होंने यह कहते हुए जन-साधारण के मन में संदेह-रोपण कर दिया कि सीता की पवित्रता संदिग्ध थी क्योंकि वे कई महीनों तक रावण के अधिकार में रहीं थीं। इन विवादों से बचने के लिए तथा अयोध्या के नागरिकों के मन के असामंजस्य को समाप्त करने के लिए, श्री राम ने सीता को क्षेत्र-दर्शन कराने के बहाने वन में ले जाने और वाल्मीकि आश्रम के निकट छोड़ आने के लिए लक्ष्मण को नियुक्त किया।

हमें ज्ञात होता है कि वाल्मीकि आश्रम में लव और कुश ने कैसे जन्म लिया और आश्रम में कैसे प्रचुर स्नेह और आदर से उनका पालन-पोषण किया गया। वे बड़े होकर विख्यात योद्धा बन गए। वे किसी को भी पराजित कर सकते थे। इस तरह सीता कई वर्षों तक वन में रहने और ऋषि के मार्ग दर्शन में आश्रम में अपने पुत्रों का पालन-पोषण करने के लिए बाध्य हो गईँ।

जब उन्हें अपने पिता के बारे में अधिक ज्ञात हुआ, उन्होंने अपने पिता की अनुपस्थिति के कारण स्वयं को वंचित माना। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण पढ़ने के बाद, वे अपनी माता की व्यथाओँ और यातनाओँ से भली भांति अवगत हो गए। इसलिए वे अपने पिता के साथ युद्ध करने गए, जिससे वे उन्हें अपनी माता की व्यथा से अवगत कर सकें।

इस पुस्तक में – हनुमान की भगवान राम और सीता के प्रति अटूट भक्ति, लव और कुश का यज्ञ और लव और कुश का संग्राम जैसी और बहुत सी कहानियाँ हैं।

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